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धान की सीधी बुआई विधि के साथ लोकप्रिय किस्मों की पूरी जानकारी

खरीफ की मुख्य फसल धान की सीधी बुआई से अच्छा उत्पादन

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किसान भाइयों कृषि में आज आधुनिकीकरण का प्रचलन जिस प्रकार से बढ़ा है ऐसे में किसान भाई देसी तरीको को भी आधुनिक तरिके से जोड़ कर अच्छा उत्पादन ले रहे हैं आज हम कृषि वाणी आपको कृषि में खरीफ की मुख्य फसल धान की सीधी बुआई के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे किसान भाई अच्छा उत्पादन ले सकते हैं जी हाँ ये सच है और भारत के कई राज्यों में इस तकनीक धान की सीधी बुआई का प्रयोग कर कम जल व मेहनत से अच्छा उत्पादन ले रहे हैं पर इस विधि की शुरुआत में किसानों को कई समयसायों का सामना करना पड़ा था जिसमें बुआई से ले कर खरपतवार तक के प्रबन्धन में समस्या आ रही थी पर देश के कृषि वैज्ञानिक लगतार इस विधि के ऊपर अपना अनुसंधान कर रहे थे जिससे आज उनको सफलता भी मिली इसका मुख्य श्रेय कृषि यंत्र बनाने वाली कंपनियों जैसे बीज के बुआई यंत्र बना कर कृषि में क्रांति ला दी है जिससे नियमित दुरी पर बिन की बुआई होती है और खरपतवार क प्रबन्धन में भी समस्या नहीं होती है साथ ही अच्छा उत्पादन भी होता है

सीधी बुआई विधि से धान की अच्छी फसल के लिए बीज दर, बुआई का समय, बीजोपचार एवं खरपतवार नियंत्रण जैसी कई विधि मुख्य हैं। इससे विधि का प्रयोग करने से किसान भाइयों को अच्छी उपज के साथ धन, जल एवं मजदूरों की बचत होती है। सीड ड्रिल द्वारा धान की सीधी बुआई में पलेवा करने से ले कर खेत की तैयारी में लगने वाले समय तक की बचत होती है जिससे धान की फसल 10 से 15 दिनों पहले ही तैयार हो जाती है।

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धान की सीधी बुआई विधि में सबसे पहले जमीन को लेजर लेवलर मशीन द्वारा समतल किया जाता है जिससे बीज को नियमित दुरी एवं गहराई तक की बुआई से ले कर,खरपतवार हटाने के साथ सिचाई के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो और किसान भाई अच्छा उत्पादन ले सके

धान की सीधी बुआई विधि में बीज की गहराई सबसे महत्वपूर्ण है,और किसान भाई बीज की गहराई 2-3 सें.मी. रखें। अधिक गहरी या उथली बुआई से जमाव प्रभावित होता है।ऐसे अधिकतर ड्रिल मशीन या प्लान्टर में बीज पर मिटटी ककी परत चढाने वाले पहिया होता है, जिसके द्वारा बीज को गहराई तक अच्छे से बुआई किया जाता है। बुआई करके पाटा लगाएं, जिससे मिटटी में नमी पर्याप्त मात्रा में रह सके और बीज का अच्छा अंकुरण हो सके।

धान के मुख्य किस्म
धान की कुछ मुख्य किस्में जो लोकप्रिय हैं और देश के कई राज्यों में किसान भाई इन किस्मों अच्छा उत्पादन कर रहे हैं इन किस्मों के नाम निम्नलिखित है जेआर 201, पूसा सुंगधा 3, पूसा सुंगधा 5, क्रांति, सोनम, पूसा बासमती, एमटीयू 1010, तुलसी, वंदना, पंत 4, एमआर 219, डब्ल्यूजीएल 32100, जेजीएल 3844, एचएमटी, शबनम, गोविंदा, दुबराज, विष्णुभोग।

हाइब्रिड धान की किस्में
एनपीएच 567, एनपीएच 207, एसबीएच 999, , बायर 6129 , बायर 158, जेआरएच-5, एनपीएच 207, प्रो एग्रो-6201, पी ए 6444, पीएचबी 71।

खेत की तैयारी के साथ साथ बुआई के पहले खेत में अगर खरपतवार है तो वैज्ञानिकों की सलाह ले कर उचित खरपतवारनाशक का छिड़काव करें जिससे बुआई के पहले आपके खेत में सभी खरपतवार नष्ट हो जाएँ

बुआई की तकनीकी
खेत में बीजों की सटीक मात्रा के लिए समान बीज वितरण प्रणाली (झुकी प्लेटें, कपनुमा मापक या खड़ी प्लेटें) वाली मशीनों का उपयोग करें। बुआई से पूर्व सिंचाई के बाद पाटा/चैकी चलाने से मिटटी में नमी पर्याप्त रहती है और बीजों का जमाव अच्छा होता है।

बुआई के यंत्र

जीरो टिल प्लान्टर
बिना अवशेष वाली भूमि में झुकी प्लेट या कपनुमा प्लेट बीज वितरण वाली मशीनों का प्रयोग बहुत सफल पाया गया है। खेत में बिखरे हुए अवशेषों की उपस्थिति में अच्छी बुआई के लिए विभिन्न जीरो टिल यंत्र निम्न हैं:

टर्बो सीडर
टर्बो सीडर 8-10 टन/हैक्टर अवशेषों वाले खेत में सही ढंग से बुआई कर सकता है। इसे चलाने के लिए 50 हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।

पीसीआर प्लान्टर
पीसीआर प्लान्टर एक ऐसी मशीन है, जिसमें अलग-अलग फसलों के बीजों की निश्चित मात्रा के लिए ऊर्ध्वाधर प्लेटें होती हैं एवं कतार को नियन्त्रित करने के लिए उपकरण लगा होता है। यह मशीन 8-10 टन/हैक्टर तक सभी प्रकार के अवशेषों में बुआई के लिए उपयुक्त है। यह यंत्र छोटे ट्रैक्टरों (35 हॉर्स पॉवर) से भी चलाया जा सकता है।

रोटरी डिस्क ड्रिल
यह मशीन रोटरी टिल मशीनीकरण पर आधारित है तथा रोटरी डिस्क ड्रिल ट्रैक्टर की पॉवर टेक ऑफ शॉफ्ट द्वारा चलाया जाता है। घूमती हुई डिस्क अवशेषों को समान रूप से काटती हुई मिट्‌टी के अंदर छोटी सी नाली में बीज एवं उर्वरक को डालती जाती है। इस मशीन द्वारा 7-8 टन/हैक्टर बिखरे हुए एवं खड़े अवशेषों में बीजों की बुआई की जा सकती है।

 

डबल डिस्क कल्टर
इस मशीन में डिस्क का सिरा भूमि का स्पर्श करता हुआ पादप अवशेषों को काटता है। मृदा में ‘ट’ आकार की नाली बनाते हुए बीज डालते जाता है। इस मशीन में मुखय समस्या यह है कि इसमें कम वजन होने के कारण यह अवशेषों को नहीं काटती है तथा बीज एवं उर्वरक अवशेषों के सतह पर ही रह जाते हैं। बीजों के अंकुरण के लिए बुआई के तुरन्त बाद, सिंचाई करने से अच्छा जमाव हो जाता है। यह मशीन 3-4 टन/हैक्टर अवशेषों में बुआई कर सकती है।

बुआई का समय
खरीफ में धान की सीधी बुआई मानसून आने से 10-12 दिनों पूर्व करें। धान के अच्छे अंकुरण के लिए एवं कम वर्षा होने पर सिंचाई के बाद ही बुआई करें अथवा बुआई के तुरन्त बाद सिंचाई करें।अधिक वर्षा होने पर धान की पौध को पानी में डूबने से बचाने के लिए धान की पौध का वर्षा से पूर्व विकसित होना जरूरी है।

बीज उपचार
बुआई के 10-12 घंटे पूर्व बीजों को पानी में भिगोकर बुआई करने पर अंकुरण अच्छा होता है। उपचारित बीजों को बुआई से पूर्व छाया में सुखाएं। बीजोपचार से बीजों में कई प्रकार के जैव-रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो कि बीजों के अंकुरण और पौध की बढ़वार को बढ़ाते हैं। धान के बीजा को जीवाणुनाशक स्टे्रप्ट्रोसाइक्लिन (0.25 ग्राम/कि.ग्रा. बीज), फफूंदनाशक कार्बेन्डाजिम या थीरम (कार्बेन्डाजिम/थीरम 2 ग्राम/कि.ग्राबीज) द्वारा उपचारित करें, जिससे कि बीजजनित रोगों को दूर किया जा सके। कीट नुकसान से बचने के लिए थायमेथोक्सम (1 मि.ली./कि.ग्रा.) से बीज उपचारित करें।

उर्वरक प्रबंध
खेतों से प्रति इकाई ज्यादा से ज्यादा उपज की प्राप्ति के लिए संतुलित खाद देना जरूरी है। आज कार्बनिक खाद का इस्तेमाल न के बराबर होने लगा है और उर्वरक का अधिक से अधिक उपयोग कर उपज उगाई जा रही है, जिससे सूक्ष्मपोषी तत्वों का असंतुलन हुआ है। इसलिए मिट्‌टी जांच के आधार पर रासायनिक खाद के साथ कार्बनिक खाद का प्रयोग करके पोषक तत्वों के असंतुलन से बचा जा सकता है।

उर्वरक तत्वों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश की उचित मात्रा 150:60:40 कि.ग्रा./हैक्टर पाई गई है।
बुआई के समय 50 कि.ग्रा. डीएपी प्रति एकड़ मशीन से डालें तथा 30 कि.ग्रा. म्यूरेटऑफ पोटाश का छिड़काव करें या एनपीके के मिश्रण 12:32:16 को 75 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से मशीन द्वारा बिजाई के साथ डालें।
यूरिया 35 कि.ग्रा./एकड़ का प्रयोग बुआई के समय, कल्ले फूटते समय और बाली बनते समय पर करें।
सीधी बोई गई धान की फसल के स्वस्थ पौधों के लिए जिंक या आयरन सल्फट का प्रयोग फसल मांग के अनुसार करें।
खरपतवार नियंत्रण
धान की सीधी बुआई में खरपतवार प्रमुख समस्या है, लेकिन सस्य क्रियाओं तथा रासायनिक विधियों के समन्वय से खरपतवारों का प्रभावी ढंग से नियंत्राण किया जा सकता है। सही फसल क्रम का चुनाव, प्रभेद चयन,जुताई कम करना, फसल अवशेष छोड़न एवं खरपतवारों की प्रारंभिक अवस्था में रासायनिक शाकनाशियों का प्रयोग करना भी इसमें शामिल है।

सतह पलवार मृदा
सतह पर फसलों के अवशेष छोड़ने से उगने वाले खरपतवारों से भौतिक बाधा उत्पन्न होती है। जीरो टिलेज विधि में सतह अवशेष, खरपतवार के बीजों को खान वाले परभक्षियों को आवास प्रदान करते हैंतथा खरपतवारों के बीजों को सड़ाने में अधिक सहायक होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

अंकुरण से पूर्व शाकनाशियों का प्रयोग

पेन्डीमेथेलीन (स्टाम्प)1 कि.ग्रा सक्रिय तत्व 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। मृदा में नमी के अनुसार बुआई से 3 दिनों तक प्रयोग किया जाना चाहिए।

अंकुरण के पश्चात शाकनाशी
पायरेजोसल्फ्यूरॉन(साथी)20 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से बुआई से 12-20 दिनों तक प्रयोग करें। यह शाकनाशी मोथा व चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर अधिक प्रभावी है।

बिसपायरीबेक
25 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर से बुआई के 15-25 दिनों बाद (झुनखूना, सामी, मोथा तथा अन्य चौड़ी पत्ती खरपतवारों पर प्रभावी)।

पिनोक्ससुलाम
22.5 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर से बुआई के 15-25 दिनों बाद लेप्टोक्लोवा, चिड़िया घास व मकड़ा घास के लिए।

फनोक्सप्रोप+इथॉक्सी सल्फ्यूरॉन
(60 ग्राम+18 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर) बुआई के 25 दिनों बाद छिड़कें तथा निर्देशों का पालन करें। इस मिश्रण का विलंब से प्रयोग करने से धान की फसल को नुकसान हो सकता है। घास कुल के खरपतवारों के लिए प्रभावी होता है।

एजिमसल्फ्यूरॉन या इथॉक्सी सल्फ्यूरॉन
20-25 ग्राम या 18 ग्राम/ हैक्टर की दर से बुआई के 12-20 दिनों बाद प्रयोग करें। यह शाकनाशी मोथा कुल के खरपतवार एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए प्रभावी होता है।

बिस्पायरिबेक+एजिमसल्फ्यूरॉन
12.5 ग्राम + 17.5 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर बुआई के 12-20 दिनों बाद प्रयोग करें। यह मिश्रण सावां तथा मोथा प्रभावित खेतों में प्रभावी होता है।

प्रोपेनिल+ट्राक्लोपायर
3 कि.ग्रा. +500 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर बुआई के 15-25 दिनों बाद प्रयोग करें, प्रोपेनिल-घासकुल के लिए प्रभावी, ट्राक्लोपायर-चौड़ी पत्ती वाले व मोथा कुल के खरपतवारों पर प्रभावी होता है।

2-4 डी
500 ग्राम सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर से बुआई के 10-30 दिनों बाद प्रयोग करें। एकवर्षीय चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर प्रभावी होता है।

प्रयोग के बाद संतृप्त मृदा
फ्लेट फेन बहु नोजल बूम का प्रयोग करना चाहिए।

हानि
धान की सीधी बुआई द्वारा की गयी खेती में खरपतवारों की अधिकता होती है।

स्त्राेत : निखिल कुमार सिंह वैज्ञानिक,
सस्य विज्ञान, कृषि विज्ञान केन्द्र, बांदा
राजेश कुमार सिंह सह प्राध्यापक,
उद्यान महाविद्यालय, बांदा,
कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा, खेत पत्रिका, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर)।

किसान भाइयों आपको
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