आज कृषि वाणी आपके लिए ले कर आये हैं पशुपालक किसान भाइयों के लिए सबसे महत्पूर्ण जानकरी मुख्य रूप से भेड़ों में होने वाली बीमारी शीप पॉक्स से बचाव करने वाली स्वदेसी टीके के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे आईसीएआर-आईवीआरआई के टीम ने बनाया है और इससे पशुपालक किसानों को बहुत ही फायदा मिलेगा पशुओं को लम्बे समय तक कई बिमारियों से बचाया जा सकेगा साथी ही उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाएगी डयरेक्टर ने अपने संबोधन में, डॉ. त्रिलोचन महापात्रा, सचिव (डीएआरई) और महानिदेशक (आईसीएआर) ने कम खर्चीली और लंबे समय तक प्रतिरक्षा देने वाले दो महत्वपूर्ण टीके देने की दिशा में प्रगति के लिए आईसीएआर-आईवीआरआई की टीम को बधाई दी। डॉ. महापात्रा ने 2021 में लगभग 150 प्रौद्योगियों के व्यावसायीकरण करने और 4 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति प्राप्त करने के लिए एग्रीनोवेट इंडिया की सराहना की। महानिदेशक ने कहा कि देशज उपभेदों (इंडिजिनियस स्ट्रेन) का उपयोग करते हुए टीकों का विकास आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ा एक कदम है। उन्होंने जोर देकर कहा कि टीकों की कम कीमतों के कारण, कम निवेश के साथ अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जो जानवरों में उत्पादन बढ़ोतरी को सक्षम बनाएगा। उन्होंने अन्य देशों को भी स्वदेशी टीकों की आपूर्ति के तरीके खोजने की अपील की।
डॉ. भूपेंद्र नाथ त्रिपाठी, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), आईसीएआर ने माना कि टीके किसानों या पशुपालन से जुड़े लोगों के लिए बहुत अच्छा समाधान साबित होंगे। उन्होंने कहा कि टीके का व्यावसायीकरण होना आईसीएआर-आईवीआरआई के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। कम कीमत पर उपलब्धता की वजह से टीके प्रभावी ढंग से उपयोग हो सकेगा।
डॉ. प्रवीण मलिक, पशुपालन आयुक्त, पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार ने प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने और बाजारों में इसे कम कीमत पर उपलब्ध कराने पर जोर दिया। डॉ. मलिक ने प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता को भरोसेमंद बनाने की जरूरत को प्रमुखता से सामने रखा।
डॉ. बी.पी. मिश्रा, निदेशक, आईसीएआर-आईवीआरआई ने उन चारों पेटेंट के बारे में बताया, जिन्हें हाल ही में संस्थान को सौंपा गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन चारों पेटेंट में से तीन टीके हैं।
श्री राजीव गांधी, सी.ई.ओ., मेसर्स हेस्टर बायोसाइंसेस ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को एक ऐतिहासिक घटना बताया। उन्होंने कहा कि दोनों टीके देश में विकसित पहले स्वदेशी टीके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ये टीके सुअर-पालकों के लिए बाजी पलटने वाले साबित होंगे।डॉ. एस. के. सिंह, प्रभारी, आईटीएमयू, आईसीएआर-आईवीआरआई, इज़्ज़तनगर ने टीकों के सामर्थ्य और उच्च दक्षता के बारे में बताया।
इससे पहले, अपने स्वागत भाषण में, डॉ. सुधा मैसूर, सीईओ, एग्रीनोवेट इंडिया ने एग्रीनोवेट की हालिया उपलब्धियों के बारे में बताया और इस बात का संकेत दिया कि कंपनी साधारण ‘प्रौद्योगिकी हस्तांतरण’ के जरिए टिकाऊ लोक-निजी भागीदारी बनाने के लिए प्रयासरत है।लाइव अटेन्युएटेड इंडिजिनियस सीएसएफ सेल कल्चर वैक्सीन (आईवीआरआई-सीएसएफ-बीएस) क्लासिकल स्वाइन फीवर (सीएसएफ) सूअरों में होने वाला एक प्रमुख रोग है, जिसमें मृत्यु दर 100 फीसदी है। भारत में, इस बीमारी को एक लैपिनाइज़्ड सीएसएफ वैक्सीन (वेयब्रिज स्ट्रेन, यू.के.) से नियंत्रित किया जाता है, जिसे बनाने के लिए बड़ी संख्या में खरगोशों को मारा जाता है। इससे बचने के लिए, आईसीएआर-आईवीआरआई ने विदेशी स्ट्रेन के लैपिनाइज्ड वैक्सीन वायरस का उपयोग करते हुए एक सेल कल्चर सीएसएफ वैक्सीन विकसित की।
स्वदेशी सीएसएफ सेल कल्चर वैक्सीन (आईवीआरआई-सीएसएफ-बीएस) को एक भारतीय फील्ड आइसोलेट्स का इस्तेमाल करके तैयार किया गया है, जिसमें निर्यात की व्यापक संभावना है। अपने उच्च संकेंद्रण (1×109.5 टीसीआईडी 50 /एमएल) के कारण, सिर्फ 75 वर्ग सेंटीमीटर के एक टिश्यू कल्चर प्लास्क से बड़ी संख्या में टीके की डोज (लगभग 60 लाख) बन सकती है। देश की वार्षिक जरूरत 220 लाख टीकों की है, जिसे केवल 75 सेंटीमीटर के चार टिश्यू कल्चर फ्लास्क में बनाया जा सकता है।
लैपिनाइज्ड सीएसएफ वैक्सीन 15 रुपये से 25 रुपये प्रति खुराक की तुलना में प्रति खुराक लगभग दो रुपये से भी कम लागत के साथ, उच्च संकेद्रण वाली वैक्सीन सबसे किफायती सीएसएफ सेल कल्चर वैक्सीन होगी। वैक्सीन की सुरक्षा और क्षमता को बड़े पैमाने पर परखा गया है। टीके को लगाए जाने के 14 दिन बाद से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा देने में प्रभावी पाया गया है।
शीप पॉक्स बीमारी के बारे में
शीप पॉक्स, भेड़ों, जो पशुओं में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, में होने वाली एक गंभीर वायरल बीमारी है। भेड़ों में निवारक टीकाकरण के लिए संस्थान ने स्वदेशी स्ट्रेन का उपयोग करते हुए लाइव अटेनुएटेड शीप पॉक्स वैक्सीन तैयार की है।
विकसित वैक्सीन में स्वदेशी शीप पॉक्स वायरस स्ट्रेन [एसपीपीवी स्रिन 38/00] का उपयोग होता है और वेरो सेल लाइन में विकसित होता है, जो वैक्सीन उत्पादन को आसानी से मापने योग्य बनाता है। यह वैक्सीन छह महीने से अधिक उम्र की भेड़ों के लिए आसान, सुरक्षित, सक्षम और प्रतिरक्षा देने वाली [प्रभावोत्पादक] है। इसका घरेलू और क्षेत्र के स्तर पर दोनों ही जगह मूल्यांकन किया गया है। यह टीकाकरण वाले जानवरों को 40 महीने तक सुरक्षित रखता है।
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