मिटटी की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं प्राचीन तरिके से

आज कृषि में कई ऐसी चुनौतियाँ

कृषि में जिस प्रकार से आधुनिकरण का चलन बढ़ गया है ऐसे में किसान भाई भी काफी जागरूक हो गए हैं और तो और सोशल मीडिया के माध्यम से भी कई किसान भाई आज कल कृषि में नवाचार करते दिख जायेंगे ऐसे में हम कृषि वाणी की टीम भी आप भारत के सभी किसान भाइयों के लिए हमेशा से कुछ नया ले कर आया है और आज कृषि में कई ऐसी चुनौतियाँ भी हैं जिनसे हम आपको रु ब रु कराएंगे जी हाँ किसान भाइयों कृषि के क्षेत्र में मुख्य समस्या है मिटटी की उर्वरा शक्ति को जैविक तरिके से कैसे लम्बे समय तक मजबूत रखा जाए आज जिस प्रकार से रासायनिक खाद व् कीटनाशकों का लगातार उपयोग पिछले कई सालों से बढ़ गया है जिसके कारण आज हमारी मिटटी की उर्वरा क्षमता दिन प्रति दिन गिरती जा रही है जिससे हमारे किसान भाइयों को भविष्य में कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है या कई राज्यों के किसान भाई इसका सामना कर रहे होंगे क्योँकि रासायनिक दवाओं और खाद के प्रयोग से किसानो को अच्छा उत्पादन तो मिल रहा है पर इसका आम जनजीवन पर भी असर पड़ रहा है और सबसे ज्यादा दोहन जो है वो मिटटी और पौधों का हो रहा है तो किसान भाइयो को आज मिटटी के जरूरत अनुसार पोषक तत्वों की सबसे ज्यादा कमी होती जा रही है यही किसानों के लिए भी यह बड़ी चिंता का विषय बन गया है मिटटी की उर्वरता का सबसे मुख्य असर पौधों के जीवन के साथ साथ उत्पादन पर भी पड़ता है क्यूंकि मिटटी में पौधों के जरुरत के अनुरूप पोषक तत्व की कमी होती जा रही है रासायनिक उर्वरक से मिटटी में मुख्य रूप से पोषक तत्वों में नाइट्रोजन,फास्फोरस,पोटाश, जिंक की पूर्ति होती है पर मुख्य ये है की इन रासायनिक उर्वरक से मिटटी प्रकृति शक्ति को मजबूत रखना तथा जल का संचयन करना एवं मिटटी में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ाने में कोई भी मदद नहीं मिलती पर अपने आने वाले भविष्य को देखते हुए हमें रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने का प्रयास करेंगे साथ ही मिटटी की उर्वरा शक्ति को बढ़ने के लिए जैविक या प्रकृतिक तत्वों का सहारा लेंगे तभी हम अच्छे से फसलों का उत्पादन ले सकेंगे

आदि काल से मिटटी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता रहा है जिनमें कई प्रकार के सनई, ढैंचा घास उपयुक्त माने जाते हैं और यह काफी कारगर उपाय है जिससे मिटटी में जरूरत के अनुसार पोषक तत्वों की मात्रा बनी रहती है खेत में उगाई जाने वाली हरी खाद: भारत के अधिकतर क्षेत्र में यह विधि लोकप्रिय है इसमें जिस खेत में हरी खाद का उपयोग करना है उसी खेत में हरी खाद के फसल को उगाकर एक तय समय के बाद पाटा चलाकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है| वर्तमान समय में पाटा चलाने व हल से पलटाई करने के बजाय तकनीक के प्रयोग में उपयुक्त रोटा वेटर का उपयोग करने से खड़ी फसल को मिट्टी में मिला देने से हरे घास का मिश्रण जल्दी से हो जाता है और मिटटी कि जरुरत के अनुसार पोषकतत्वों की पूर्ति हो जाती है दक्षिण भारत में हरी खाद की फसल अन्य खेत में उगाई जाती है, और उसे उचित समय पर काटकर जिस खेत में हरी खाद देना रहता है उस समय मिटटी कि जुताई कर मिला दिया जाता है|


प्रकृति के वरदान केंचुओं का प्रयोग

मिटटी को उपजाऊ रखने में केंचुओं का बड़ा योगदान होता साथ ही हरी खाद के विलयन में भी काफी सहायक होती है केंचुए मिटटी को ऊपर निचे करते रहते है जिससे मिटटी में वायु का भी प्रचुर मात्रा में संचार होता रहता है और मिटटी के ऊपर निचे होने से पोषकता भी बरकरार रहती है मिटटी को उर्वरा बनाए रखने के लिए किसानों को फसल चक्र पद्धति अपनाना चाहिए जिससे मिटटी को मौसम के अनुसार फसलों से भी पोषकता मिलती रहे किसानों को साल में एक बार दलहन कि फसल को भी उत्पादन में प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे मिटटी को नाइट्रोजन कि पूर्ति होती रहे उसके आलावा फसल चक्र में गेंहू, धान, मक्का, सोयाबीन, कपास, दलहन, तिलहन जैसे मुख्य फसलों को भी प्रयोग में लाना होगा जिससे मिटटी कि उर्वरा शक्ति में जरुरत के अनुसार पोषकता मिलती रहे |पशुओं के गोबर का खाद भी उपयुक्त होता है जिससे मिटटी कि उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है समय समय पर इसका भी खेतों में जुताई करने के पहले छिड़काव करने से फायदा मिलता है साथ ही गोमूत्र से कीटनाशक बना कर खेत में छिड़काव करने से मिटटी एवं पौधों को नुक्सान पहुँचाने वाले सभी जीवाणु नस्ट हो जाते हैं

छोटे सभी किसान भाई बिना किसी रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भी खेती कर सकते हैं छोटे किसानों कि खरीद शक्ति कम होती है इसलिए गोबर कि खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जैविक उर्वरक, नीम कि खलियां या पत्तियां ,या फिर फसलों के बचे हुए अवशेषों को भी मिटटी में दबा कर मिटटी कि उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ अच्छा उत्पादन ले सकते हैं


मिटटी के पोषक तत्व जाँच

जैसा कि आज के दौर में रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से मिटटी का दोहन होता जा रहा है ऐसे में मिटटी कि जाँच करवाने के बाद जरुरत के अनुसार पोषक तत्व डाले जा सकते है |मिटटी कि जाँच आप अपने नजदीक कृषि विज्ञानं केंद्र में जा कर करवा सकते हैं

मिटटी का बचाव

मिटटी के उपजाऊ बने रहने में मिटटी का बचाव करना भी जरुरी है खेतों में अक्सर सिंचाई करते समय या बारिश के ज्यादा होने से पानी कि मात्रा ज्यादा हो जाने पर मेड़ों का निर्माण करें और जमा पानी को नाली बना कर दूसरे खेत में जाने दें ऐसे में मिटटी के कटाव का भी समस्या होती है जिससे मिटटी को उर्वरा रखने वाले जीवाणु भी पानी के साथ कटे हुए मिटटी में बह जाते हैं जिससे खेत को नुक्सान पहुँचता है
तो मिटटी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए कई विधियां हैं जिससे उनकी पोषकता को बरकरार रखा जा सकता है और मुख्य रूप से अब फसल चक्र पद्धति अपना कर या पशुओं के गोबर एवं गोमूत्र द्वारा निर्मित किटनाशक का प्रयोग कर मिटटी को आने वाले भविष्य में खाद्यान के अच्छे उत्पादन के लिए उपजाऊ बना कर रख सकते हैं और सभी को गुणवत्तापूर्ण उत्पादों कि पूर्ति भी हो सकेगी

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