जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए अब मधुमक्खी से मदद

जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए अब एक अनोखी पहल

किसानों, ग्रामीणों व् फसलों की जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए अब एक अनोखी पहल की जा रही है जी हैं भारत के कई राज्यों में में जैसे कर्नाटका,केरला,महराष्ट्र,ओडिशा व् अन्य कई राज्यों में जंगलों के नजदीक ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों व् फसलों को जंगली हाथियों द्वारा नष्ट कर दिया जाता था साथ ही इसमें कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती थी इसे ही देखते हुए अब
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथियों तथा ग्रामीणों के बीच लड़ाई को रोकने के लिए री-हैब परियोजना की शुरुआत की जा रही है वास्तव में देखें तो हाथियों के एक झुंड की कल्पना करें, जो सबसे बड़ा जानवर होता हैऔर समान रूप से बुद्धिमान भी, उन्हें शहद वाली छोटी-छोटी मधुमक्खियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों से दूर भगाया जा रहा है। इसे एक प्रयोग कहेंगे पर , यह कर्नाटक केजंगलों की एक वास्तविकता है।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने देश में ग्रामीण जान व् हाथी के बिच भगाने को लेकर हो रहे संघर्ष को कम करने के लिए “मधुमक्खी-बाड़” बनाने की एक अनूठी परियोजना शुरू की जा रही है । प्रोजेक्ट री-हैब (मधुमक्खियों के माध्यम से हाथी-ग्रामीणों के हमलों को कम करने की परियोजना) का मुख्य मकसद शहद वाली मधुमक्खियों का उपयोग करके ग्रामीण क्षेत्रों में हाथियों के हमलों को विफल करना है और इस प्रकार से ग्रामीणों व हाथी दोनों के जीवन की हानि को कम से कम करना है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना द्वारा कर्नाटक के कोडागु जिले के चेलूर गांव के आसपास चार स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया। ये सभी स्थान नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के बाहरी इलाकों में स्थित हैं और ग्रामीणों -हाथी टकराव को रोकने के लिए तत्पर है। री-हैब परियोजना की कुल लागत सिर्फ 15 लाख रुपये है।

प्रोजेक्ट री-हैब केवीआईसी के राष्ट्रीय शहद मिशन के तहत एक उप-मिशन है। क्योँकि शहद मिशन मधुवाटिका स्थापित करके मधुमक्खियों की संख्या बढ़ाने, शहद उत्पादनऔर मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने का मुख्य लक्ष्य है, तो एक तरिके से प्रोजेक्ट री-हैब हाथियों के हमले को रोकने के लिए मधुमक्खी के बक्से को बाड़ के रूप में उपयोग करता है।

केवीआईसी ने हाथियों के मुख्य क्षेत्रों के मार्ग के सभी चार स्थानों में से सभी जगह पर मधुमक्खियों के 15-20 बॉक्स स्थापित किए हैं और सभी बक्से के साथ एक तार के साथ जुड़े हुए हैं ताकि जब हाथी गुजरने का प्रयास करें, तब एक तार या पुल हाथी के झुंड को आगे बढ़ने से रोक दे। मधुमक्खी के बक्से को जमीन पर रखा गया है और साथ ही हाथियों के रस्ते को रोकने करने के लिए पेड़ों से लटकाया गया है। हाथियों पर मधुमक्खियों के प्रभाव और इन क्षेत्रों में इस कदम के उठाये जाने से उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए और नतीजे पर पहुँचने के लिए नाइट विजन कैमरे भी लगाए गए हैं।

केवीआईसी के अध्यक्ष सक्सेना ने ग्रामीणों -हाथी टकराव को रोकने के लिए एक इसे एक अनोखी शुरुआत बताया और कहा कि यह समस्या देश के कई हिस्सों में आम बात है। उन्होंने कहा कि “यह वैज्ञानिक रूप से भी माना गया है कि हाथी, मधुमक्खियों से घबराते हैं और वे मधुमक्खियों से डरते भी हैं। हाथियों को डर रहता है कि, मधुमक्खी के झुंड सूंड और आंखों के उनके संवेदनशील अंदरुनी हिस्से को काट सकते हैं। मधुमक्खियों का सामूहिक झुंड हाथियों को परेशान करता है और यह उन्हें वापस चले जाने के लिए मजबूर करता है। हाथी, जो सबसे बुद्धिमान जानवर होते हैं और लंबे समय तक अपनी याददाश्त में इन बातों को बनाए रखते हैं, वे सभी उन जगहों पर लौटने से बचतेहैं जहां उन्होंने मधुमक्खियों का सामना किया होता है।” सक्सेना ने यह भी कहाकि“प्रोजेक्ट री-हैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह हाथियों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही उन्हें वापस लौटने को मजबूर करता है। इसके अलावा, यह गड्ढों को खोदने या बाड़को खड़ा करने जैसे कई अन्य उपायों की तुलना में बेहद प्रभावी है।

भारत में हाथी के हमलों के कारण हर साल लगभग 500 लोग मारे जाते हैं।यह देश भर में बड़ी बिल्लियों की वजह से हुए घातक हमलों से लगभग 10 गुना अधिक है। 2015 से 2020 तक, हाथियों के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमेंसे अकेले कर्नाटक में लगभग 170 मानवीय मौतें हुई हैं। इसके विपरीत, इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा, यानी पिछले 5 वर्षों में मनुष्यों द्वारा प्रतिशोध में लगभग 500 हाथियों की भी मौत हो चुकी है।

इससे पहले, केवीआईसी की एक इकाई केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान पुणे ने हाथियों के हमलों को कम करने के लिए महाराष्ट्र में “मधुमक्खी-बाड़” बनाने के क्षेत्रीय परीक्षण किए थे। हालांकि, यह पहली बारहै कि खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने इस परियोजना को समग्रता में लॉन्च किया है। केवीआईसीने परियोजना के प्रभाव मूल्यांकन के लिए कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, पोन्नमपेट के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की सहायता ली है। इस अवसर पर केवीआईसी के मुख्य सलाहकार (रणनीतिऔर सतत विकास) डॉ. आर सुदर्शन और कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के डीन डॉ. सीजी कुशालप्पा उपस्थितथे

हाथियों के कारण हुई मानव मौतें

वर्ष                                  मृत्यु

2014-15                            418

2015-16                            469

2016-17                             516

2017-18                             506

2018-19                             452

कुल                                     2361

 

मनुष्यों की राज्य-वार मौतें (2014-15 से 2018-19)

राज्य                                          मृत्यु

पश्चिम बंगाल                               403

ओडिशा                                      397

झारखंड                                      349

असम                                        332

छत्तीसगढ़                                   289

कर्नाटक                                     170

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