भारत के कई किसान भाई खेती में लागत कम और मुनाफा कमाने के लिए जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं ऐसे में सभी किसान भाइयों के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है पर हम गांव एक्सप्रेस आज आपको बताने जा रहे हैं कि वर्मीकम्पोस्ट का निर्माण कैसे करें और वर्मीकम्पोस्ट का बिज़नेस कैसे करे ।जिस प्रकार से लगातार बढ़ती महंगाई के कारण रासायनिक उर्वरक भी महंगे होते जा रहे है।सीमित उत्पादन और अधिक खर्च के कारण किसान कर्ज के नीचे दबते जा रहे है। इसके लिए इसका इलाज हमें खुद करना पड़ेगा | खेतों को सुधारने के साथ साथ वर्मी कम्पोस्ट को एक शानदार साइड बिज़नेस के तौर पर किया जा सकता है |
तो किसान भाइयों इसे विस्तार से समझते हैं |
वर्मीकम्पोस्ट का बिज़नेस कैसे करे
कुछ प्रगतिशील किसान केंचुवा खाद (वर्मी कम्पोस्ट ) ओधोगिक स्तर पर बना कर लाखों रूपये कमा रहे हैं |
केंचुआ को किसानो का मित्र एवं भूमि की जान कहा जाता है। यह agriculture waste जैसे सरसों , चने,गंवार धान की परली इत्यादि व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर तक फैलाता है, इससे जमीन नरम होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाता है | और जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है। केंचुवे के पेट में जो रासायनिक क्रिया होती है, उससे भूमि में जाने वाले फास्फोरस, पोटाश, कैल्सियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से भूमी में लगभग नाइट्रोजन 7 गुना फास्फोरस 11 गुना व पोटाश 14 गुना हो जाती है है। तथा केंचुआ प्रतिवर्ष 1-5 मि.मी. मोटी कृषि योग्य भूमि बना देता है|
आज भारत के कई राज्यों में कुछ प्रगतिशील किसान केंचुवा खाद (वर्मी कम्पोस्ट ) बना कर लाखों रूपये कमा रहे हैं |और किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं
कुछ किसान वर्मी कम्पोस्ट को अपने खेतों मैं डाल कर जैविक उत्पादन ले रहे है जैसे
–जैविक गेहूं
–जैविक सब्जियां
–जैविक गन्ना और उससे बने उत्पाद जैसे गुड़
और वो इनको 5 गुना दाम पर बेच रहे है | खेती को उन्होंने मुनाफे का सौदा बना दिया है | किसानों की हालत बदलने के उद्देश्य से केंद्रीय कृषि एवम किसान कल्याण मंत्रालय भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रहा है। जिससे उनकी फसल कीलागत को कम करके उत्पादन को बढ़ाया जा सके।हरितक्रांति के बाद से ही किसान तेजी से अपनी फसल में रासायनिक खाद का प्रयोग करते आ रहे हैं जो कि जैविक खाद की तुलना में काफी महंगा होता है। और सही समय पर बाजार में उपलब्ध भी नही होता है। जबकि आज किसान घर पर ही कम खर्च मे कुछ आसान विधियों को अपनाकर अच्छी किस्म की वर्मी कम्पोस्ट खाद बना सकते हैं।गोबर को फसल पोषण का सबसे बढ़िया विकल्प माना जाता हैं। जिसमे पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म तत्व सही मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इन सूक्ष्म तत्वों को पौधे बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। गोबर में उपस्थित सूक्ष्मजीव भूमि में उपस्थित जैव-भार के विघटन का काम बहुत ही सफलतापूर्वक करते हैं।
जैविक खाद बनाने की कई विधियां प्रचलन में हैं।
1- कम्पोस्ट,
2-नाडेप विधि,
3-मटका खाद
4-वर्मी कम्पोस्ट
आजकल वर्मी कम्पोस्ट को तैयार करने का काम औद्योगिक स्तर पर भी हो रहा है। और कुछ प्रगतिशील किसान भीअपनी आवश्यकतानुसार घर पर ही इसे तैयार कर रहे है। वर्मी कम्पोस्ट विधि का प्रचलन अन्य विधियों की तुलना में आज कही अधिक है। इस विधि से उत्तम किस्म की जैविक खाद का निर्माण कम समय में हो जाता है।तथा इस विधि से बनाई गयी खाद की गुणवत्ता भी अधिक होती है। इसके साथ ही वर्मी कम्पोस्ट विधि से प्राप्त खाद का भण्डारण भी ज्यादा सहजता से किया जा सकता है। इन सब कारणों को ध्यान मे रखकर इस विधि के प्रति किसानों में आकर्षण उत्पन्न हो रहा है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए आवश्यक सामग्री
वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए सभी प्रकार के जैव-क्षतिशील कार्बनिक पदार्थ जैसे गाय, भैंस, भेड़, और मुर्गियों आदि का मल, बायोगैस स्लरी, जैविक कूड़ा-कचरा, फसल अवशेष जैसे सरसों , चने,गंवार धान की परली इत्यादि , घास-फूस व पत्तियां आदि का उपयोग किया जा सकता है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधियां
किसान भाईयो वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते है। इनमे से हम कुछ
प्रमुख तरीको का वर्णन इस लेख में कर रहे है।
1- चार हौद विधि
किसान भाईयो चार हौद विधि से वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए चुने गये छायादार स्थान पर 12 फिट लम्बाई 12 फिट चौड़ाई और 2.5 फिट ऊंचाई का एक गड्ढा पक्की ईंटो से बनाया जाता है। इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। तरह से हमारे पास 4 गडढे हो जाते है। प्रत्येक गड्ढ़े का आकार लगभग 5.5 फिट लम्बा, 5.5 फिट चौड़ा और 2.5 फिट ऊंचा होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। इन विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़ दिए जाते हैं। इस प्रकार की गढ्ढो की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। इस विधि में सबसे पहले एक गडढे को जैविक कचरे से पूरी तरह भरते है।गडढे को भरने के लिए जैविक कचरे और गोबर को मिक्स करके भर सकते है। या फिर गडढे में सबसे नीचे 5 से 6 इंच मोटी जैविक कचरे की परत बिछा कर उसके ऊपर एक 2 से 3 इंच की परत गोबर की बिछा देते है। इसी तरह एक के बाद एक परत बिछाकर गडढे भर लेते है।
पहले एक महीने तक पहला गड्ढा भरते हैं पूरा गड्ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर उस गडढे को काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना शुरू कर देते हैं।दूसरे माह जब दूसरा गड्ढा भी भर जाता है तब उसे भी इसी प्रकार काले पॉलीथिन से ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढे में भरना शुरू कर देते हैं। जो गडढा सबसे पहले भरा था अब उस गडढे का जैविक कचरा अधगले रूप मे परिवर्तित हो चुका होगा। इस गड्ढ़े से काली पॉलीथिन उत्तर दे एक दो दिन बाद जब इस गड्ढे का तापमान कम हो जाए तब उसमें लगभग 5 किग्राम ( करीब 5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद इस गड्ढे को सूखी घास अथवा जूट की बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है।
इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं
और चौथे को गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से होते हुए खुद ही प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार लगातार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके हैं केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाती है। इस गड्ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्ढे में धीरे-धीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों से होते हुए प्रवेश कर जाते हैं।अब पहले गड्ढे से तैयार जैविक खाद निकाल लेते है और गडढे को दोबारा जैविक कचरे भरना शुरू कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्यके गड्ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल
और चौथे को गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से होते हुए खुद ही प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार लगातार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके हैं केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाती है। इस गड्ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्ढे में धीरे-धीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों से होते हुए प्रवेश कर जाते हैं।अब पहले गड्ढे से तैयार जैविक खाद निकाल लेते है और गडढे को दोबारा जैविक कचरे भरना शुरू कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्यके गड्ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल
खाद (70 प्रतिशत) बनकर तैयार होती है। इस प्रकार एक वर्ष में चार गड्ढों से तीन चक्रों में कुल 84 कुन्तल अच्छी किस्म की जैविक खाद प्राप्त होती है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्ढे से 25 किलोग्राम और 4 गड्ढों से कुल 100किलोग्राम केंचुए भी प्राप्त होते हैं।
2- पेड़ विधि
किसान भाईयो वर्मी कम्पोस्ट बनाने की इस विधि मे पेड़ के चारों ओर जैविक कचरा तथा गोबर गोलाई में डाला जाता है।प्रतिदिन गोबर को डालकर धीरे-धीरे पेड़ के चारो ओर इस गोल चक्र को पूरा किया जाता है। जब गोबर और कचरा अधगले रूप में आजाये तो गोबर के ढेर में जरूरत के हिसाब से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। इस गोल चक्र मे नमी के लिए जूट के बोरो के ऊपर से ही समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है। ये विशेष प्रजाति के केंचुए अधगले जैविक कचरे और गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं औरअपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते जाते हैं। इस प्रकार ,तैयार वर्मी कम्पोस्ट को इकठ्ठा करके उसमे से केचुओं को छान कर अलग कर लेते है। इसके बाद वर्मी कम्पोस्ट को बोरों में भरकर रख लिया जाता है।
4 –वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लिए hdpe प्लास्टिक के बने बनाये बैग भी आते है | लेकिन ये अच्छा विकल्प नहीं है| महंगे पड़ते है और ज्यादा दिन नहीं चलते |इस विधि मे प्लास्टिक की बोरी या तिरपाल से बांस के माध्यम से टटिया बनाकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। किसान भाई घर पर ही प्लास्टिक की बोरियों को खोलकर और कई बोरियो को एक साथ मिलाकर सिलाई करके ये टटिया तैयार कर सकते है।या फिर बाजार से भी इन्हें खरीद सकते है। इन सिली हुई बोरियो को बांस या लट्ठे के सहारे चारो ओर से सहारा देकर गोलाई में रख कर उसमें गोबर जैव अवशेष डाल दिया जाता है। गोबर के आधगला होने पर गोबर में केंचुए डाल दिए
जाते है। टटिया विधि से वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण करने पर लागत बहुत ही कम आती है। और इसे ज़रूरत के अनुसार उठा कर एक जगह से दूसरी जगह पर भी आसानी से रखा जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की पूरी प्रक्रिया
1- किसान भाई से पहले जैविक कचरा तथा गोबर एकत्रित करके इस कचरे में से पत्थर,काँच,प्लास्टिक,रबर तथा
धातुओं को निकल कर अलग करलेे।
2- बड़े जैविक कचरे जैसे फसल की पत्तिया, पौधों के तने, गन्ने की खोयी को काटकर 2-4 इन्च आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल लें। ऐसा करने से कम्पोस्ट खाद बनने में कम समय लगता है।
3- जैविक कचरे से दुर्गन्ध दूर करने तथा अवाँछित जीवों को खत्म करने के लिए कचरे को एक फुट मोटी सतह के रुप में फैलाकर धूप में सुखाया जाता है।
4- अब जैविक कचरे को गाय या भैंस के गोबर में अच्छी तरह मिलाकर करीब एक माह तक सड़ाने सड़ने के लिए गड्डों अथवा बेड में एक ढेर के रूप मे डाल दिया जाता है। इस ढेर मे पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसारपानी का छिड़काव करते रहे।
5- वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए सबसे पहले बेड या गडढे के फर्श पर बालू की 1 इन्च मोटी पर्त बिछाई जाती है फिर इसके ऊपर 3-4 इन्च मोटाई में फसल का अवशिष्ट की पर्त बिछाते हैं। पुन: इसके ऊपर एक माह तक गले कचरेऔर गोबर की 18 इन्च मोटी पर्त इस प्रकार बिछाते। इस प्रकार तैयार किये गए 10 फिट लम्बाई के बेड में लगभग 500 कि.ग्रा. कार्बनिक अवशिष्ट समा जाता है। इस बेड को अर्धवृत्त रखा जाता हैं। ताकि केंचुए को घूमने के लिए पर्याप्त स्थान तथा बेड में हवा का प्रबंधन ठीक प्रकार से संभव हो सके। अब इस बेड को 2-3 दिन के लिए ऐसे ही रहने दे। तथा बेड मे उचित नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए।
6- दो तीन दिन बाद जब बेड के सभी भागों में तापमान सामान्य हो जाये तब एक बेड मे लगभग 5000 केंचुए बेड की एक तरफ से इस प्रकार डालते हैं कि यह लम्बाई में एक तरफ से पूरे बेड तक आसानी से पहुँच जाये।
7- बेड या गड्ढ़े को फसलो के अवशिष्ट जैसे धान की पुआल की 3-4 इन्च मोटी पर्त से ढक देते हैं। बेड को ढकने के लिए जूट के बोरो का प्रयोग भी अच्छा होता है। अनुकूल परिस्थितया मिलने पर केंचुए इस पूरे बेड पर अपने आप फेल जाते हैं। ज्यादातर केंचुए बेड में 2-3 इन्च गहराई पर रहकर कार्बनिक पदार्थों का भक्षण करके वर्मी कम्पोस्ट का उत्सर्जन करने लगते हैं।
8- अनुकूल आर्द्रता, तापक्रम तथा हवामय परिस्थितयोंमें 25 से 30 दिनों के बाद बेड की ऊपरी सतह पर 3-4 इन्च मोटी केंचुआ खाद(वर्मी कम्पोस्ट) एकत्र हो जाती हैं। इसे अलग करने के लिए बेड की बाहरी आवरण सतह को एक तरफ से हटाते हैं। ऐसा करने पर जब केंचुए बेड में गहराई में चले जाते हैं तब केंचुआ खाद को बेड से आसानी से अलग कर लिया जाता है। इसके बाद बेड को फिर से पहले की तरह कचरे या जूट के बोरो से ढक कर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव कर देते हैं।
9- लगभग 5-7 दिनों में दोबारा वर्मी कम्पोस्ट की 4-6 इन्च मोटी एक ओर पर्त तैयार हो जाती है। इसे भी पूर्व की भाँति ही अलग कर लिया जाता हैं। तथा बेड में फिर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव किया जाता है। इसी प्रकार प्रति सप्ताह के अंतराल पर बेड के ऊपर वर्मी कम्पोस्ट की 5 से 6 इंच मोटी पर्त तैयार होती रहेगी। इस प्रकार 40 से 45 दिनों मे लगभग 85 प्रतिशत वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है।
10- बेड पर बची बाकी 15 प्रतिशत कॉम्पोस्ट कुछ केंचुओं तथा केचुए के अण्डों (कोकूनद) सहित दूसरी बार बेड तैयार करते समय केचुए के संरोप के रुप में प्रयुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार लगातार केंचुआखाद उत्पादन के लिए इस प्रकिर्या को दोहराते रहते हैं।
11- वर्मीकम्पोस्ट को प्लास्टिक/एच0 डी0 पी0 ई0 थैले में सील करके पैक किया जाता है ताकि इसमें नमी कम न हो।
वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय ध्यान देने योग्य कुछ बाते किसान भाईयो कम समय में उच्च गुणवत्ता वाली वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए विशेष बातोंपर ध्यान देने की अतिआवश्यकता होती है । जो इस प्रकार है।
1- वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने वाले बेडों अथवा गडढों में केंचुआ छोड़ने से पहले कच्चे उत्पाद (गोबर व आवश्यक
कचरा) का आंशिक विच्छेदन कर लेना जरूरी है।जिसमें 15 से 20 दिन का समय लगता है
2- ये जानने के लिए की वर्मी बेड पर डाले गए गोबर तथा कचरे के ढेऱ में केंचुआ के लिए अनकूल वातावरण है या नही इस ढेर मे गहराई तक हाथ डालने पर गर्मीं महसूस नहीं होनी चाहिए। कचरे के अंदर का तापमान सामान्य होने पर ही उसमे केचुए डालने चाहिए।
3- वर्मी बेडों से अच्छी वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए गोबर तथा कचरे के ढेर मे 30 से 40 प्रतिशत नमी बनाये
रखना जरूरी है। क्यों कि कचरें में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नही करतें।
4- वर्मी कम्पोस्ट बेडों पर पड़े कचरे के ढेर के अंदर का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना बहुत जरूरी है। तापमान कम या अधिक होने पर केचुए मरने लगते है। इन बेडों पर तेज धूप न पड़ने दें। तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान बढ़ जाता है। और केंचुए बेड की तली में चले जाते हैं या अक्रियाशील रह कर मर जाते हैं।
5- वर्मी कम्पोस्ट बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे कि बेड अथवा गडढे में ताजे गोबर का प्रयोग कभी भी न करें। ताजे गोबर में अधिक गर्मी होने के कारण केंचुए मर जाते हैं।
6- अच्ची क्वालटी की वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए जैविक कचरे में गोबर की कम से कम 20 प्रतिशत मात्रा होनी चाहिए।
7- कांग्रेस घास को फूल आने से पहले गाय अथवा भैंस के गोबर में मिला कर और आंशिक विच्छेदन कर के इस का प्रयोग जैविक कचरे के रूप मे करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।
8- कचरे का पी. एच. उदासीन (7.0 के आसपास) रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं। कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखने के लिए। बेड तैयार करते समय उसमें राख अवश्य मिलाएं।
9- केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाशकों का उपयोग न करें।
10- खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावडे़ का प्रयोग न करें।
वर्मीकम्पोस्ट ट्रेनिंग एवं ज्यादा जानकारी के लिए आप संपर्क कर सकते है किसान भाईयो अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी है तो कृपया करके ज्यादा ज्यादा किसान भाईयो तक पहुंचाए.हम गांव एक्सप्रेस टीम का प्रयास है भारत के सभी किसान भाइयों तक कृषि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करते रहें और किसी किसान भाइयों को अगर कृषि से जुड़ी किसी अन्य जानकारी की आवश्यकता है तो कमेन्ट बॉक्स में अपना नंबर भेजें हमारी टीम आपसे जल्द संपर्क करेगी और आप इसका प्रशिक्षण लेना चाहते हैं तो अपने जिले के नजदीक कृषि विज्ञान केंद्र में सम्पर्क करें ।