गाजर की नई किस्म मधुवन गाजर के बारे में जाने

गाजर की नई किस्म मधुवन गाजर में-बीटा कैरोटीन और लौह तत्व की उच्च मात्रा मौजूद है

भारत के किसान के कारनामे कृषि अनुसंधान में कृषि वैज्ञानिकों को भी अचरज में डाल देते हैं जी हाँ ऐसा इस बार भी हम कृषि वाणी आपके लिए कुछ नया ले कर आये हैं जिससे गाजर की खेती करने वाले किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है हम आपको बता रहे है कि किसान-वैज्ञानिक द्वारा विकसित गाजर की जैव-सशक्त (बायो-फोर्टिफाइड) किस्म किसानों को लाभ पहुंचा रही है

गुजरात के जूनागढ़ जिले के एक किसान-वैज्ञानिक वल्लभभाई वसरमभाई मरवानिया ने गाजर की एक जैव-सशक्त किस्म मधुवन गाजर को विकसित किया है, जिसमें-बीटा कैरोटीन और लौह तत्व की उच्च मात्रा मौजूद है। इससे क्षेत्र के 150 ते अधिक किसानों को लाभ मिल रहा है। जूनागढ़ के 200 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की गई है। इसकी औसत पैदावार 40-50 टन प्रति हेक्टेयर है। स्थानीय किसानों के लिए यह आमदनी का प्रमुख स्रोत बन गया है। पिछले 3 वर्षों के दौरान गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के लगभग 1000 हेक्टेयर में मधुवन गाजर की खेती की जा रही है।

मधुवन गाजर उच्च पौष्टिकता वाली गाजर की एक किस्म है, जिसमें बीटा-कैरोटीन (277.75 मिलिग्राम प्रतिकिलो) तथा लौह तत्व (276.7 मिलीग्राम प्रति किलो) मौजूद है। इसे चयन प्रक्रिया द्वारा विकसित किया गया है। इसका उपयोग अन्य मूल्य वर्धित उत्पादों के लिए भी किया जाता है जैसे गाजर चिप्स, गाजर का रस और अचार। जांच की गई सभी किस्मों में बीटा कैरोटीन और लौह तत्व की उच्च मात्रा पाई गई है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान-नेशनलइनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) ने 2016 से 2017 के दौरान जयपुर स्थित राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान (आरएआरआई) में मधुवन गाजर का सत्यापन परीक्षण किया। परीक्षण में पाया गया कि मधुवन गाजर की उपज 74.2 टन प्रति हेक्टेयर है और पौधे का बायोमास 275 ग्राम प्रति पौधा है।

एनआईएफ ने मधुवन गाजर किस्म का कृषि परीक्षण गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम, हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल राज्यों के 25 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में किया, जिसमें 100 किसानों ने हिस्सा लिया। यह पाया गया कि उपज और अन्य गुणों के मामले में गाजर की यह किस्म बेहतर है।

1943 के दौरान श्री वल्लभभाई वसरमभाईमरवानिया ने पाया कि गाजर की एक स्थानीय किस्म का इस्तेमाल दूध की गुणवत्ता में सुधार के लिए पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। उन्होंने इस किस्म के गाजर की खेती शुरू की और इसे बाजार में बेचा, जिसकी अच्छी कीमत मिली। तब से वे अपने परिवार के साथ गाजर की इस उपजाति के संरक्षण और विकास के लिए कार्य कर रहे हैं। मधुवन गाजर के बीजों का उत्पादन और विपणन कार्य उनके बेटे श्री अरविन्दभाई द्वारा किया जा रहा है। औसत बिक्री 100 क्विंटल प्रतिवर्ष है। पूरे देश में बीजों के विपणन के लिए 30 स्थानीय बीज आपूर्तिकर्ता कार्यरत हैं। बीजों के उत्पादन का कार्य कुछ स्थानीय किसानों के साथ श्री वल्लभभाई स्वयं कर रहे हैं।

इस किस्म के विकास के प्रारंभिक वर्षों के दौरान वल्लभभाई ने बीज उत्पादन के लिए सबसे अच्छे पौधों को चुना और घरेलू खपत तथा विपणन को ध्यान में रखते हुए एक छोटे से क्षेत्र में इसकी खेती की। बाद में इस गाजर की मांग बढ़ी और 1950 के दशक में उन्होंने बड़े पैमाने पर इसकी खेती शुरू की। 1970 के दशक में उन्होंने अपने गांव और आस-पास के गांवों के किसानों के बीच इसके बीज वितरित किए। 1985 के दौरान उन्होंने बढ़े पैमाने पर बीजों की बिक्री शुरू की। मधुवन गाजर की औसत उपज 40-50 टन प्रति हेक्टेयर है और गुजरात, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में सफलतापूर्वक इसकी खेती की जा रही है। भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित फेस्टिवल ऑफ इनोवेशन (एफओआईएन)-2017 कार्यक्रम में श्री वल्लभभाई वसरमभाई मरवानिया को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्हें असाधारण कार्य के लिए 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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