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किसान भाइयों अप्रैल महीने के मुख्य कृषि कार्य

किसान भाइयों कृषि वाणी आप सभी किसान के लिए कृषि से जुड़े सभी मुख्य जानकारी

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किसान भाइयों कृषि वाणी आप सभी किसान दोस्तों के लिए कृषि से जुड़े सभी मुख्य जानकारी समय समय पर उपलब्ध करते रहेंगे अपने इस खबर में हम आपको अप्रैल महीने में किये जाने वाले कृषि कार्यों के बारे में बता रहे हैं जो ध्यान रखने योग्य है अप्रैल माह के कृषि कार्य गेहूँ की फसल की कटाई करते हैं। और उसके बाद खेत को मूंग या चारे की फसल के लिये तैयार की जाती है। गन्ने में पानी देकर निदाई-गुड़ाई करते हैं। खाद डालते हैं।मक्का, बरबटी, लूसन को काटकर-जानवरों को खिलाया जाता है।अरहर, जौ, सरसों, अलसी की कटाई की जाती है। खेत की जुताई की जाती है ताकि कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा करे।

जो फसलो की कटाई हुई है, उसे सुखाकर कर अनाज को अच्छे से रखते हैं। कोठी, टंकी, बारदानों को अच्छी तरह साफ करने के बाद नया अनाज उनमें रखते हैं।

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आम के बगीचे में पानी देते हैं।नींबू जातिय पेड़ों में सिंचाई बन्द रखते हैं। केले के पौधों में चारों ओर से निकलते हुए सकर्स को निकाल दिया जाता है।गर्मी के भिण्डी के बीज से बुवाई करते हैं। दूसरे खड़ी फसलों की हर सप्ताह सिंचाई की जाती है। प्याज और लहसुन की खुदाई करते हैं।

कृषि में ध्यान देने योग्य जरूरी बातें

आज के समय में खेती करनी है तो वैज्ञानिक ढंग से ही करें वरना लाभ की जगह नुकसान मिल सकता है। वैज्ञानिक ढंग आपके सदियों से चले आ रहे तरीकों का सुधरा व लाभदायक रूप है जिससे उतनी ही भूमि में कम समय, मेहनत व लागत से ज्यादा उपज मिलती है। इसके लिए आपको सिर्फ सोच बदलने की जरूरत है।

 

फसल चक्र योजना अपनाएं

विशेषकर छोटे व मझोले किसान जिनके पास भूमि कम है, अपने खेतों के लिए फसल चक्र योजना जरूर बनाऐ ताकि समय पर खाद, बीज, दवाईयां व अन्य आदान खरीद सके एवं अपनी फसल को सही भाव पर सही मंडी में बेच सकें। सही फसल चक्र से खाटों का सही उपयोग, बीमारियों व कीटों की रोकथाम तथा विशेषकर दलहनी फसलें उगाने से मिट्टी की सेहत भी बनती है। कुछ लाभदायक फसल चक्र इस प्रकार हैं।

हरी खाद (ट्रेंचा/ लोबिया, मूंग) – मक्का /धान – गेहूं। मक्का / धान – आलू गेहूं।

मक्का/ धान – आलू – ग्रीष्मकार्लोन मूंग /। धान – आलू / तोरिया – सूरजमूखी।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली – आलू / तोरिया / मटर / चारा – गेहूं।

इसके अलावा सब्जियां व फूल भी फसल चक्र में उगा सकते है।

मिट्टी परीक्षण

अप्रैल माह में खेत खाली होने पर मिट्टी के नमूने ले लें। तीन वर्षों में एक बार अपने खेतों की मिट्टी परीक्षण जरूर कराएं ताकि मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों (नेत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, जिंक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य) की मात्रा तथा फसलों में कौन सी खाद कब व कितनी मात्रा में डालनी है, का पता चले का पता चले। मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में खराबी का भी पता चलता है ताकि उन्हें सुधार जा सके। जैसे कि क्षारीयता को जिप्सम से, लवणीयता को जल निकास से तथा अम्लीयता को चूने से सुधारा जा सकता है। ट्यूबवैल व नहर के पानी की जांच भी हर मौसम में करवा लें ताकि पानी की गुणवत्ता का सुधार होता रहे व पैदावार ठीक हों।

हरी खाद बनाना

मिट्टी की सेहत ठीक रखने के लिए देशी गोबर की खाद या कम्पोस्ट बहुत लाभदायक है परंतु आजकल कम पशु पालने के चक्कर में देशी खाद बहुत कम मात्रा में मिल रही है। इससे पैदावार में गिरावट हो रही है। देशी खाद से सूक्ष्म तत्व भी काफी मात्रा में मिल जाते हैं। अप्रैल में गेहूं की कटाई तथा जून में धान / मक्का की बीजाई के बीच ५०-६० दिन खेत खाली रहते है इस समय कुछ कमजोर खेतों में हरी खाद बनाने के लिए द्वैचा, लोबिया या मूग लगा दें तथा जून में धान रोपने से १-२ दिन पहले या मक्का बोने से १०-१७ दिन पहले मिट्टी में जुताई करके मिला दें इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है। इस तरह बारी-बारी सभी खेतों में हरी खाद फसल लगाते व बनाते रहें। इससे बहुत लाभ होगा तथा दो मुख्य फसलों के बीच का समय का पूरा प्रयोग होगा। गेहूं – फसल पकते ही उन्नत किस्म की दरातियों से कटाई करें जिससे थकान कम होगी। फसल को गहाई से पहले अच्छी तरह सुखा लें जिससे सारे दाने भूसे से अलग हो जाए तथा फफूंद न लगे। गहाई के लिए सौसर की नाली ३ फुट से ज्यादा लम्बी होनी चाहिए जिसमें ढका हुआ हिस्सा १.५ फुट से ज्यादा हो। इससे हाथ कटने कोज्ञ दुर्घटना से बचा जा सकता हैं। सौसर चलाते समय नशीली वस्तु प्रयोग न करें, ढीले कपडे न पहने, हाथ पूरा अन्दर ना डालें, रात को रोशनी का पूरा प्रबंध रखें , फसल पूरी तरह सूखी हो, यदि सौसर ट्रैक्टर से चल रहा हो तो सारे पुर्जे ढके रहे व धुए के नाली के साथ चिंगारी-रोधक का प्रबंध करें। पास में पानी, रेत व फस्ट ऐड बाक्स जरूर रखें ताकि दुर्घटना होने पर काम आ सके। कटाई व गहाई एक साथ कंबाइन – हारवेस्टर से भी हो जाती है। गेहूं के दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाकर साफ करके व टूटे दानों को निकालकर ठंडा होने पर शाम को साफ लोहे के ढोलों में भंडारण करें। नमी की मात्रा १० प्रतिशत तक रखें ससे गेहूं में कीडा नहीं लगेगा। ऊंचे पहाडी क्षेत्र जैसे कि हिमाचल में किन्नौर जिला , काश्मीर व उत्तरांचल के सीमावर्ती जिलों में गेहूं अप्रैल में बोया जाता है तथा सितम्बर-अक्टूबर में काटा जाता है।

चारा फसलें
अप्रैल माह में बोया चारा गर्मीयों व बरसात में चारे की कमी नहीं आने देता।

संकर हाथी घास

नेपियर बाजरा संकर-२१, पी.वी.एन-२३३ व ८३ किस्में १००० किवंटल चारा पूरे साल भर देती है। इसे जडों या तनों के टुकडों दवारा लगाया जाता है। २० इंच लम्बे २-३ गाठों वाले ११००० टुकडे २.७ फुट लाईनों में तथा २ फुट दूरी पोधों में रखें। रोपाई से पहले २० टन गली-सडी गोबर की खाद 9 बोरे सिंगल सुपर फासफेट तथा १.५ बोरे यूरिया डालें। हर कटाई के बाद १.५ बोरे यूरिया डाले।

मक्का

किस्म जे-1006 उन्नत है जोकि 50-60 दिन बाद 167 किवंटल हरा चारा देती है। इसके 30 कि.ग्रा. बीज को 1 फुट दूर लाईनों में बोये तथा एक बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट व 1/3 म्यूरेट आफ पोटास डालें।

बागवानी
नीबू में 1 वर्ष के पोधे के लिए २ कि.ग्रा. कम्पोस्ट तथा 70 ग्राम यूरिया प्रति पौधा दें। यह मात्रा आयु के हिसाब से गुणा कर दें। परंतु १० या अधिक वर्ष के पोधे को सिर्फ १० गुणा ही दें। अप्रैल में नीबू का सिल्ला, लीफ माइनर और सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए ३०० मि.ली. मैलाथियान ७० ईसी. को ७०० लीटर पानी में घोलकर छिडके। तने व फलों का गलना रोग के लिए बोडों मिश्रण (4:4:50 का छिडकाव करें। जस्ते की कमी के लिए ३ कि.ग्रा जिंक सल्फेट को १.७ कि.ग्रा. बुझा हुआ चून के साथ ५०० लीटर में घोलकर छिड़कें।

अंगूर – नई लगाई वेलों में १७० ग्राम यूरिया तथा २७० ग्राम पोटाशियम सल्फेट प्रति वेल दें। पुरानी वेलों की मात्रा आयु के अनुसार गुणा कर दें। सिाप, हरा तेला, पत्ता लपेट सुण्डी व पत्ते खाने वाली वीटल की रोकथाम के लिए ७०० मि.ली. मैलाथियान को ७०० लीटर पानी से १०० वेलों पर छिडकें।

आम – फलों को गिरने से बचाने के लिए यूरिया के २ प्रतिशत घोल से पेड पर छिडकाव करें। मीलीबग नई कोपलों, फूलों व फलों का रस चूसकर काफी नुकसान करती है। नियंत्रण के लिए ७०० मि.ली. मिथाईल पैराथियान ७० ई.सी. को ७०० लीटर पानी में छिडके तथा नीचे गिरी या पेडो पर चढ़ रह कीडो को इकट्ठा करके जला दें तथा घास वगैरा साफ रखें। यदि तेला (हापर) फूल पर नजर आये तो ७०० मि.ली. मैलाथियान ७० ई.सी. ७०० लीटर पानी में छिडके। ब्लैक टिप रोग से फल बेढगे व काले हो जाते है इसके लिए बोरेक्स ०.६ प्रतिशत का छिडकाव करें।

अमरूद – अप्रैल में सिंचाई न करें, फूलों को तोड दें ताकि फल मक्खी फूलों में अण्डे न दें पाये जिससे फल सड जाते है। अमरूद की सिर्फ शरदकालीन फसल ही लेनी चाहिए। बेर – बीजों को अच्दी तरह तैयार की गई क्यारियों में बोये। पौध सितम्बर तक तैयार हो जाएगी। अच्छी किस्में सिंधूरा, नारनौल, सेव, गोला, कैथली व उमरान है।

लीची – १०० ग्राम यूरिया प्रति पेड प्रति वर्ष आयु के हिसाब से डालें।

आडू – अप्रैल में १०० ग्राम यूरिया प्रति पेड प्रति वर्ष आयु के हिसाब से डालें।

पपीता – अप्रैल मे पपीते की नर्सरी लगाने के लिए ४० वर्ग मीटर में १७० बीज को ६ x ६ इंच की दूरी तथा 1 इंच गहरा लगाएं। उन्नत किस्मों में सनराइज, हनीडयु, पूसा डिलीशियस, पूसा डर्वाफ व पूसा जांयट है एक नर्सरी में १ क्विंटल खाद मिलाकर बेड तैयार करें और बीज को १ ग्राम कैपटोन से उपचारित करें , जब पौधा उग आये तो ०.२ प्रतिशत कैपटोन से स्प्रे करने से पौध अर्द्धगलन से बच जाएगी।

तरबूज – तरबूज में कीडों के लिए २ मि.ली. मैलाथियान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडके। पाऊडरी मिल्डयु बीमारी के लिए २ ग्राम वाविस्टीन प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडके। दवाई छिडकने से पहले फल तोड लें या फिर १० दिन बाद तोड़े।

फूल
उगाने के लिए खेत तैयार कर धूप लगाएं ताकि कीड़े तथा बीमारियों की रोकथाम हो। गेंदा – के पौधे अप्रैल शुरू में लगा सकते है ताकि गर्मियों में फूल मिल सकें। गेदां के फूलों की मंदिरों, शादी तथा अन्य सजावटों में बहुत मांग होती है। गेंदा उगाना सबसे आसान कार्य है। इसके फूल कई दिनों तक खराब नहीं होते। इस फसल में बीमारी भी नहीं लगती। गुलाब – के फूल ग्रीष्म तथा सर्दी दोनों मौसमों में आते हैं तथा होटल व्यवसाय में इनकी बहुत मांग है। पहाडी क्षेत्रों में गुलाब की कटाई-छटाई के बाद २ बोरा यूरिया, ४ बोरा सिंगल सुपर फासफेट तथा 1 बोरा म्यूरेट आफ पोटाश के साथ २-३ टन कम्पोस्ट खेतों में डालें। अप्रैल में नए गुलाब के पोधे भी लगा सकते हैं। गूलाब के लिए अच्दी जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। बाकी फूल – बालसम , डैजी, डाइएनयस, पारचुलका, साल्विया, सनफल्वार, बरवीना, जीनिया इत्यादि फूल घर सजावट के लिए गमलों या क्यारियों मे लगा सकते है।

 

सब्जियां
चुलाई – की फसल अप्रैल में लग सकती है। जिसके लिए पूसा किर्ती व पूसा किरण ५००-६०० कि.ग्रा. पैदावार देती है। ७०० ग्राम बीज को लाइनों में ६ इंच तथा पौधों में 1 इंच दूरी पर आधी इंच से गहरा न लगाएं। बीजाई पर १० टन कम्पोस्ट, आधा बोरा यूरिया तथा २.७ बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें। चुलाई की कटाइयां मई से लेकर अक्टूबर तक मिलेंगी। हर कटाई के बाद १/४ बोरा यूरिया डाले व सिंचाई करें।

मूली – की पूसा चेतकी किस्म का 1 कि.ग्रा. बीज 1 फुट लाइनों में तथा ४ इंच पौधों में दूरी रखें तथा आधा इंच से गहरा न लगाएं। बीजाई पर आधा बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट तथा आधा बोरा म्यूरेट आफ पोटाश के साथ १० टन कम्पोस्ट डालें। फसल में जल्दी-जल्दी हल्की सिंचाईयां करें। फसल मई में तैयार होकर १००० कि.ग्रा. से अधिक पैदावार देती है।

ग्वार – फलियों के लिए पूसा सदावहार, पूसा मौसमी व पूसा नववहार किस्में अप्रैल में लगा सकते है। ८-१० कि.ग्रा. बीज को १.५ फुट दूर लाईनों में लगाएं तथा बीजाई पर १/३ बोरा यूरिया व २.७ बोरे सिंगल सुपर फास्फेट दें। फलियां सब्जी के लिए जून में तैयार मिलती है।

ककडी, लौकी, कछू, टमाटर, बैगन, टिंडा व मिंडी – इनकी खडी फसलों पर यदि हरा तेला दिखाई दे तो फल तोडकर ०.१ प्रतिशत मैलाथियान ७० ईसी का घोल फसल पर स्प्रे करें। यदि झुलसा रोग दिखाई दे तो जाइनेव २ ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडके। तना व फली छेदक के लिए २ मि.ली. एण्डोसल्फान ३७ ईसी 1 लीटर पानी में घोलकर छिडके।

बैगन – मैदानी क्षेत्रों में फरवरी-मार्च में लगाई नर्सरी अप्रैल में रोपी जा सकती है। पूसा भैरव व पूसा पर्पल लोग किस्में उपयुक्त हैं। पहाडी क्षेत्रों में पूसा पर्पल कलस्टर किस्म अप्रैल में रोपने से बढिया उपज देती है।

फूल गोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, मटर, फ्रांसबीन व प्याज – पहाडी व सर्द क्षेत्रों में अप्रैल माह में ये सभी फसलें लगाई जाती हैं।

प्याज की नर्सरी लगाकर जून माह में खेत मे रोपी जा सकती हैं। मशरूम – खुम्ब बहुत कम स्थान लेती है तथा काफी आमदनी देती है। इसे उगाने के लिए गेहूं के भूसे या धान के पुआल का प्रयोग करें। हल्के भीगे पुआल में खुम्ब के बीज डालने के ३-४ हपते बाद खुम्ब तोडने लायक हो जाती है।

स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची

 

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